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|रचनाकार=कुमार विनोद
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एक सम्मोहन लिए हर बात में
हर तरफ़ बैठे शिकारी घात में

आने वाली नस्ल को हम दे चुके
दो जहाँ की मुश्किलें सौग़ात में

बादलों का स्वाद चखने हम चले
तानकर छाता भरी बरसात में

आप जिंदा हैं, ग़नीमत जानिए
कम नहीं ये आज के हालात में

जगमगाते इस शहर को क्या पता
फ़र्क़ भी होता है कुछ दिन-रात में

मोम की क़ीमत नहीं कुछ इन दिनों
छोड़िये, रक्खा है क्या जज़्बात में
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