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::धूरि हूँ दरैंगी जऊ अंग छिलि जाइगौ ॥
पांच आंच हूँ की झार झेलिहैं निहारि जाहि
::रावरौ हू कठिन करेजौ हिलि जाइगौ ।
सहिहैं तिहारे कहैं सांसति सबै पै बस
::एती कहि देहु कै कन्हैया मिलि जाइगौ ॥61॥
</poem>
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