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शक्ल जब बस गई आँखों में तो छुपना कैसा / अकबर इलाहाबादी
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01:21, 26 मार्च 2010
घूरती है मुझे ये नर्गिस-ए-शेहला कैसा
ऎ
ऐ
मसीहा यूँ ही करते हैं मरीज़ों का इलाज कुछ न पूछा
के
कि
है बीमार हमारा कैसा
क्या कहा तुमने
के
, कि
हम जाते हैं
,
दिल अपना संभाल
ये तड़प कर निकल आएगा संभलना कैसा
</poem>
Sandeep Sethi
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