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[[Category:गज़ल]]
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अब वही हर्फ़-ए-जुनूँ सब की ज़ुबाँ ठहरी है
जो भी चल निकली है वो बात कहाँ ठहरी है
आज तक शैख़ के इकराम में जो शय थी हरामअब वही हर्फ़दुश्मन-ए-जुनूँ सब की ज़ुबाँ ठहरी है<br>जो भी चल निकली है वो बात कहाँ दीं राहत-ए-जाँ ठहरी है<br><br>
आज तक शैख़ के इकराम में जो शय थी हराम<br>है ख़बर गर्म कि फिरता है गुरेज़ाँ नासेहअब वही दुश्मनगुफ़्तगू आज सर-ए-दीं राहतकू-ए-जाँ बुताँ ठहरी है<br><br>
है ख़बर गर्म के फिरता है गुरेज़ाँ नासेह<br>गुफ़्तगू आज सरवही आरिज़-ए-कूलैला वही शीरिअन का दहननिगह-ए-बुताँ शौक़ घड़ी भर को यहाँ ठहरी है<br><br>
वस्ल की शब थी तो किस दर्जा सुबक गुज़री है वही आरिज़-ए-लैला वही शीरिअन का दहन<br>निगह-ए-शौक़ घड़ी भर को यहाँ हिज्र की शब है तो क्या सख़्त गरां ठहरी है<br><br>
वस्ल की शब थी बिखरी एक बार तो किस दर्जा सुबक गुज़री है<br>हाथ आई कब मौज-ए-शमीमहिज्र की शब दिल से निकली है तो क्या सख़्त गराँ कब लब पे फ़ुग़ाँ ठहरी है <br><br>
बिखरी एक बार तो हाथ आई कब मौजदस्त-ए-शमीम<br>दिल से निकली सय्याद भी आजिज़ है तो कब लब पे फ़ुग़ाँ कफ़-ए-गुल्चीं भीबू-ए-गुल ठहरी न बुल-बुल की ज़बाँ ठहरी है<br><br>
दस्त-ए-सय्याद भी आजिज़ है कफ़-ए-गुल्चीं भी<br>आते आते यूँ ही दम भर को रुकी होगी बहारबू-ए-गुल ठहरी न बुल-बुल की ज़बाँ जाते जाते यूँ ही पल भर को ख़िज़ाँ ठहरी है<br><br>
आते आते यूँ ही दम भर को रुकी होगी बहार<br>जाते जाते यूँ ही पल भर को ख़िज़ाँ ठहरी है<br><br> हमने जो तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ की है क़फ़स में इजाद<br>"फ़ैज़" गुलशन में वो तर्ज़-ए-बयाँ ठहरी है<br><br/poem>