{{KKRachna
|रचनाकार= जावेद अख़्तर
|संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर
}}
{{KKCatGhazal}}[[Category:ग़ज़ल]]<poem>सच ये है बेकार हमें ग़म होता है <br>जो चाहा था दुनिया में कम होता है<br><br>
ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम <br>हमसे पूछो कैसा आलम होता है <br><br>
ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की <br>जब होता है कोई हम-दम हमदम होता है <br><br>
ज़ख़्म तो हम ने हमने इन आँखों से देखे हैं <br>लोगों से सुनते हैं मरहम होता है <br><br>
ज़ेह्न ज़हन की शाख़ों पर आशार अशआर आ जाते हैं <br>जब तेरी यादों का मौसम होता है <br><br/poem>