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अब अगर आओ तो / जावेद अख़्तर

30 bytes added, 13:27, 30 मार्च 2010
|रचनाकार=जावेद अख़्तर
}}
[[Category:ग़ज़ल]]<poem>
अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
 सिर्फ अहसान एहसान जताने के लिए मत आना
मैंने पलकों पे तमन्‍नाएँ सजा रखी हैं
 
दिल में उम्‍मीद की सौ शम्‍मे जला रखी हैं
 ये हँसीं हसीं शम्‍मे बुझाने के लिए मत आना
प्‍यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
 चाहने वालों की तक़बीरें तक़दीरें बदल सकती हैं 
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना
अब तुम आना जो तुम्‍हें मुझसे मुहब्‍बत है कोई
 
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
 तुम कांई कोई रस्‍म निभाने के लिए मत आना</poem>
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