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|संग्रह=यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश / नवारुण भट्टाचार्य
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हर रात हमारी जुए में
कोई न कोई जीत लेता है चाँद
चाँद को तुड़वा कर हम खुदरे तारे बना लेते हैं
हमारी जेबें फटी हैं