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|रचनाकार= जावेद अख़्तर|संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर
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[[Category:ग़ज़ल]]<poem>मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है <br>मगर भूलना भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ <br>कि तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो कोई ख़्वाब नहीं<br> यहाँ तो दिल का ये आलम है क्या कहूँ <br>कमबख़्त <br>!भुला सका न पाया ये वो सिलसिला जो था ही नहीं <br>वो इक ख़याल <br>जो आवाज़ तक गया ही नहीं <br>वो एक बात <br>जो मैं कह नहीं सका तुम से <br>तुमसे वो एक रब्त <brref>संबंध</ref>वो हम में जो हममें कभी रहा ही नहीं <br>मुझे है याद वो सब <br>जो कभी हुआ ही नहीं <br>अगर ये हाल है दिल का तो कोई समझाए <br/poem>तुम्हें भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ <br>कि तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो कोई ख़्वाब नहीं<br><br>{{KKMeaning}}