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02:06, 16 अप्रैल 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
ब्रज-रजरंजित सरीर सुभ ऊधव कौ
::धाइ बलबीर ह्वै अधीर लपटाए लेत ।
कहै रतनाकर सु प्रेम-मद-माते हेरि
::थरकति बाँह थामि थहरि थिराए लेत ॥
कीरति-कुमारी के दरस-रस सद्य ही की
::छलकनि चाहि पलकनि पुलकाए लेत ।
परन न देत एक बूँद पुहुमी की कौंछि
::पौंछि-पौंछि पट निज नैननि लगाए लेत ॥108॥
</poem>