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कबीर दोहावली / पृष्ठ १
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02:34, 16 अप्रैल 2010
तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय । <BR/>
कबहुँ उड़
आँखो पड़े
आँखिन परे
, पीर घानेरी होय ॥ 2 ॥ <BR/><BR/>
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर । <BR/>
डा० जगदीश व्योम
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