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[[Category:ग़ज़ल]]
वो नज़र में नज़ारा नहीं है
और कोई तमन्ना नहीं है
और कोई तमन्ना नहीं बात कहता है अपनी वो लेकिन सच बयाँ तुम करोगे भला क्या तुमने कुछ भी तो देखा नहीं है शे‘र कहता हूँ वरना समन्दर कूज़े में यूँ सिमटता नहीं उसमें सुनने का माद्दा नहीं है
सच बयाँ तुम करोगे भला क्या
तुमने कुछ भी तो देखा नहीं है
ज़िन्दगी है सफ़र धूप का भी
बरगदों का ही साया नहीं है
बरगदों का ही साया शेर कहता हूँ वरना समन्दर क़ूज़े मे यूँ सिमटता नहीं है
नाख़ुदाओं की है मेहरबानी
कश्तियों को किनारा नहीं है