{{KKRachna
|रचनाकार=ग़ालिब
|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर
जानेगा अब भी तू न मेरा घर कहे बग़ैर
घर कहते हैं, जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर रही न मुझे ताक़त-ए-सुख़न<brref>शायरी</ref>जानेगा अब भी तू न मेरा घर जानूं किसी के दिल की मैं क्योंकर कहे बग़ैर <br><br>
कहते हैं, जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुख़न <br>काम उससे आ पड़ा है कि जिसका जहान में जानूं किसी के दिल की मैं क्योंकर लेवे ना कोई नाम सितमगर कहे बग़ैर <br><br>
काम उससे आ पड़ा है कि जिसका जहान जी में <br>ही कुछ नहीं है हमारे, वगरना हम लेवे ना कोई नाम सितमगर सर जाये या रहे, न रहें पर कहे बग़ैर <br><br>
जी में ही कुछ नहीं है हमारे, वगरना हम <br>छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना सर जाये या रहे, छोड़े न रहें पर ख़ल्क़ गो मुझे काफ़िर कहे बग़ैर <br><br>
छोड़ूँगा मैं न उस बुतमक़सद है नाज़-एओ-काफ़िर का पूजना <br>ग़म्ज़ा वले गुफ़्तगू में काम छोड़े न ख़ल्क़ गो मुझे काफ़िर कहे बग़ैर चलता नहीं है, दश्ना<brref>चाकू<br/ref>-ओ-ख़ंजर कहे बग़ैर
मक़सद है नाज़हरचन्द<ref>चाहे जितनी भी</ref> हो मुशाहित-ओए-ग़म्ज़ा वले गुफ़्तगू में काम हक़<brref>खुदा को देखना</ref> की गुफ़्तगू चलता बनती नहीं है, दश्नाबादा<ref>प्याला</ref>-ओ-ख़ंजर साग़र कहे बग़ैर <br><br>
हरचन्द बहरा हूँ मैं तो चाहिये दूना हो मुशाहित-ए-हक़ की गुफ़्तगू इल्तफ़ात<brref>कृपा</ref>बनती सुनता नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर हूँ बात मुक़र्रर<brref>दुबारा<br/ref>कहे बग़ैर
बहरा हूँ मैं तो चाहिये दूना हो इल्तफ़ात <br>सुनता नहीं हूँ बात मुक़र्रर कहे बग़ैर <br><br> "ग़ालिब" न कर हुज़ूर में तू बार-बार अर्ज़ <br>ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बग़ैर <br><br/poem>{{KKMeaning}}