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06:20, 25 अप्रैल 2010 नहीं बनना मुझे ऐसी नदी<br />
जिसे पिघलती मोम के<br />
'प्रकाश के घेरे में घर' चाहिए<br />
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शब्द जीवन से बड़ा है यह<br />
गलतफहमी जिनको हो<br />
उनकी ओर होगी पीठ<br />
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रहूं भले ही धूलि सा<br />
फिर भी जीवन ही कविता होगी<br />
मेरी.<br />
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