{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=लाल्टू|संग्रह= एक झील थी बर्फ़ की / लाल्टू}}<poem>मेरे बाप को मरे इस दिन चार साल हो गये<br />गए<br />बाप <br />पियक्कड़ मजदूर<br />मज़दूरमॉं माँ को लातें मारता<br /><br />शराब की महक के साथ<br />गालियॉं गालियाँ होंठों से निकलतीं<br />गोलियों की बौछार -सी<br /><br />जहॉं मर्जी जहाँ मर्ज़ी मूत देता<br />कभी-कभी<br />सारी-सारी रात<br />जगे रहते हम<br /><br />मजदूर मज़दूर बाप मेरा<br />शहर के गन्दे नालों -सा सच<br />थप्पड़ मार-मार कोशिश की<br />मैं पढ़ूं <br />पढ़ूँबन जाऊं जाऊँ साहबों -सा पैसे वाला<br />गन्दगी ने बनाया मुझे<br />खौलता सच्चा इंसान.<br />इंसान।<br /poem>