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12:19, 27 अप्रैल 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ग़ालिब
|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
आईना देख अपना सा मुंह लेके रह गये
साहिब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
क़ासिद<ref>संदेशवाहक</ref> को अपने हाथ से गरदन न मारिये
उस की ख़ता नहीं है यह मेरा क़सूर था
</poem>
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