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07:37, 28 अप्रैल 2010 दो आदमी<br />
पार करते हैं सोन<br />
सॉंझ के झुटपुटे में<br />
तोड़कर पानी की नींद<br />
<br />
इस पार जंगल<br />
उस पार गॉंव<br />
और बीच में सोन<br />
पार करते हैं दो आदमी<br />
गमछों में बॉंधकर करौंदे और जामुन<br />
कंधों पर कुल्हाडियॉं<br />
और सिरों पर लकडियॉं लिये<br />
<br />
लकडियॉं जो जलेंगी उनके घर<br />
और खुशी से फूलकर<br />
कुप्पा हो जायेंगी रोटियां<br />
कुप्पा हो जायेंगे दो घरों के मन<br />
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हरहराता है जंगल<br />
<br />
उन्हें विदा देने <br />
सोने के किनारे तक आती है<br />
मकोई के फूलों की गंध<br />
और वापस लौट जाती है<br />
<br />
उनके जाने के बाद भी <br />
देर रात तक<br />
जागता रहता है पानी.<br />
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