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:::बल खाके भी न बल-रेखा एकाने दी।
जाने दी न आन-बान-शान तिल-भर भी उसकी,
:::जानबूझ करके अपनी जान चली जाने दी।
'''रचनाकाल : स्वातन्त्र्य पूर्व
</poem>
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