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06:15, 29 अप्रैल 2010 वृक्षों की फुनगियों पर<br />
टॅंगी है<br />
एक झीनी-सी भोर<br />
चिडियों के झीने संगीत में डूबी हुई<br />
<br />
नींद से जाग रहे हैं घर<br />
और सिक्कों की तरह<br />
खनक रहे हैं<br />
<br />
वे आ रहे हैं<br />
बीडियॉं सुलगाते<br />
पगडंडियॉं नापते<br />
बैलों की टुनटुनाती घंटियों के साथ<br />
गहरी सॉंस खींचकर<br />
मन-प्राण में भरते<br />
सोंधी धान-गंध<br />
<br />
धूप में<br />
चमक रहे हैं<br />
उनके हॅंसिये<br />
<br />
हिल रहे हैं<br />
आंवले और जामुन के पेड़<br />
उनके सपनों में<br />
चुपके से अपनी नीलिमा<br />
घोर रही है नदी<br />
<br />
भार से झुक रही हैं बालियॉं<br />
और सुनहरे रंग में<br />
डूब रहे हैं खेत<br />
<br />
वे जीतेंगे<br />
धरती की यह विपुल सम्पदा<br />
और अपनी बैलगाडियों में लादकर<br />
वापस लौट जायेंगे.<br />
<br />