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यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी के उर के भीतर,
::दल पर दल खोल ह्रदय हृदय के अस्तर::जब बिठलाती प्रसन्न होकर::वह अमर प्रणय के शतदल पर !
मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर,::क्षण में प्राणों की पीड़ा हर,नवजीवन ::नव जीवन का दे सकती वर::वह अधरों पर धर मदिराधरमदिराधर।
यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर,
::वासनावर्त में दल डाल प्रखर::वह अंध गर्त में चिर दुस्तर::नर को धेकेल ढकेल सकती सत्वर ! रचनाकाल: जनवरी’ ४०
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