Changes

{{KKRachna
|रचनाकार=नन्दल हितैषी
|संग्रह=बेहतर आदमी के लिए / नन्दल हितैषी
}}
{{KKCatKavita}}
<poemPoem>
पेड़ / जितना झेलता है
सूरज को
सूरज कभी नहीं झेलता.झेलता।
पेड़ / जितना झेलता है
मौसम को
मौसम कभी नहीं झेलता.झेलता।
...... और पेड़ / जितना झेलता है
आदमी को
आदमी कभी नहीं झेलता.झेलता।
सच तो यह है
पेड़ / अँधेरे में भी
रोशनी फेंकते हैं
और अपने तैनात रहने को
देते हैं आकार.आकार।
..... और आदमी उजाले में
और फलते हैं गिद्ध
वही करते हैं बूढ़े बरगद की
लम्बी यात्रा को अन्तिम प्रणाम.प्रणाम।
अगर उगने पर ही उतारू,
हो जाय पेड़
पेड़ / कभी धरती पर भारी नहीं होते,
आदमी की तरह / आरी नहीं होते.होते।पेड़ / अपनी जमीन पर खड़े हैं.हैं।
इसलिये / आदमी से बड़े हैं,
पेड़ / जितना झेलता है
सूरज को
सूरज कभी नहीं झेलता.झेलता।
पेड़ / जितना झेलता है
मौसम को
मौसम कभी नहीं झेलता.झेलता।
...... और पेड़ / जितना झेलता है
आदमी को
आदमी कभी नहीं झेलता.--~~~~झेलता।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,273
edits