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संध्या के बाद / सुमित्रानंदन पंत
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16:57, 3 मई 2010
:लेन देन के थोथे सपने
दीपक के मंडल में मिलकर
:
मँडराते घिर सुख दुख अपने।
कँप कँप उठते लौ के सँग
:मिट्टी खपरे के घर आँगन,
भूल गए लाला अपनी सुधि,
:
भूल गया सब व्याज, मूलधन!
सकुची सी परचून किराने की ढेरी
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