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मज़दूरनी के प्रति / सुमित्रानंदन पंत
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11:00, 4 मई 2010
कुल वधू सुलभ संरक्षणता से हो वंचित,
निज बंधन खो, तुमने स्वतंत्रता की अर्जित।
स्त्री नहीं,
आज मानवी
बन गई
आज मानवी
तुम निश्चित,
जिसके प्रिय अंगो को छू अनिलातप पुलकित!
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