<Poem>
दिन रात लोग मारे जाते हैं
दिन रात बचता हूंहूँबचते-बचते थक गया हूंहूँ
न मार सकता हूंहूँन किसी लिए भी मर सकता हूंहूँविकल्प नहीं हूंहूँदौर का कचरा हूंहूँ
हत्या का विचार
होती हुई हत्या देखने की लालसा में छिपा है
मरने का डर सुरक्षित है
चाल -ढाल में उतर गया है
यह मेरी अहिंसा है बापू!
आप कहेंगे
इससे अच्छा है कि मार दो
या मारे जाओ.जाओ।
किसे मार दूंदूँमारा किस से जाऊंजाऊँआह! जीवन बचे रहने की कला है.है।</poem>