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बरखा का एक दिन / अनातोली परपरा
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16:10, 7 मई 2010
हवा बही जब बड़े ज़ोर से
बरसी वर्षा झम-झमा-झम
मन में उठी कुछ
ऎसी
ऐसी
झंझा
दिल थाम कर रह गए हम
गरजे मेघा झूम-झूम कर
जैसे बजा रहे हों साज
ता-ता थैया नाचे धरती
ख़ुशियाँ मना रही वह आज
भीग रही बरखा के जल में
तेरी कोमल चंदन-काया
मन मेरा हुलस रहा, सजनी
घेरे है रति की माया
</poem>
अनिल जनविजय
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