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आज रहने दो यह गृह-काज / सुमित्रानंदन पंत
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06:12, 13 मई 2010
:प्रिये लालस-सालस वातास,
:जगा रोओं में सौ अभिलाष।
अजा
आज
उर के स्तर-स्तर में, प्राण!
सजग सौ-सौ स्मृतियाँ सुकुमार,
दृगों में मधुर स्वप्न-संसार,
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