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07:41, 20 मई 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विजय कुमार पंत
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<poem>
घर से बाहर
तुमको ही नहीं
सुनी सड़क भी ढूंढता हूँ
ताकि तुमसे बात कर सकूं
अक्सर वो तेज़ गाड़ियों की आवाज़
तोड़ देती है
सपना
मेरे सामने से गुज़रकर
जंगल जा रहा हूँ
डरना मत
वहां शेर नहीं होते
कुछ ऊँची गगनचुम्बी
शीशे की इमारतों
में शोर और शराबे
का जंगल
यहाँ तुम याद नहीं आती
न ही हिम्मत होती है
सूनी सड़क ढूढने की
और ज़रुरत भी
क्या है
सामने बोर्ड पर लिखा है
“ओनली कपल्स अलाउड”....
</poem>