{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[category: ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}
<poem>
कोई आया था लटें खोले हुए पिछली रात
आख़िरी वक़्त ये तकदीर तक़दीर बदलती देखी
देखिये, हमको कहाँ राह लिए जाती है
अब तो मंजिल मंज़िल भी यहाँ साथ ही चलती देखी
होश इतना था किसे उठके जो प्याला लेता!