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परंपरा / रामधारी सिंह "दिनकर"
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17:25, 24 मई 2010
नया पृष्ठ: <poem> परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो | उसमे बहुत कुछ है, जो जीवित है, जी…
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परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो |
उसमे बहुत कुछ है,
जो जीवित है,
जीवन दायक है,
जैसे भी हो,
ध्वसं से बचा सकता है|
</poem>
Ramesh Mishra
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