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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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जगत-घट को विष से कर पूर्ण

किया जिन हाथों ने तैयार,

लगाया उसके मुख पर, नारि,

तुम्‍हारे अधरों का मधु सार,


:::नहीं तो देता कब का देता तोड़

:::पुरुष-विष-घट यह ठोकर मार,

:::इसी मधु को लेने को स्‍वाद

:::हलाहल पी जाता संसार!
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