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07:19, 26 मई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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जगत-घट को विष से कर पूर्ण
किया जिन हाथों ने तैयार,
लगाया उसके मुख पर, नारि,
तुम्हारे अधरों का मधु सार,
:::नहीं तो देता कब का देता तोड़
:::पुरुष-विष-घट यह ठोकर मार,
:::इसी मधु को लेने को स्वाद
:::हलाहल पी जाता संसार!