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07:28, 26 मई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
रहे गुंजित सब दिन, सब काल
नहीं ऐसा कोई भी राग,
रहे जगती सब दिन सब काल
नहीं ऐसी कोई भी आग,
:::गगन का तेजोपुंज, विशाल,
:::जगत के जीवन का आधार
:::असीमित नभ मंडल के बीच
:::सूर्य बुझता-सा एक चिराग।