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07:38, 26 मई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
पहुँच तेरे अधरों के पास
हलाहल काँप रहा है, देख,
मृत्यु के मुख के ऊपर दौड़
गई है सहसा भय की रेख,
:::मरण था भय के अंदर व्याप्त,
:::हुआ निर्भय तो विष निस्तत्त्व,
:::स्वयं हो जाने को है सिद्ध
:::हलाहल से तेरा अमरत्व!