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स्वर्णधूलि (कविता) / सुमित्रानंदन पंत
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05:49, 1 जून 2010
नाम रूप के भेद भर गए स्वर्ण चेतना से आलिंगित!
चक्षु वाक् मन श्रवण बन गए सूर्य अग्नि शशि
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दिशा
परस्पर,
रूप गंध रस शब्द स्पर्श की झंकारों से पुलकित अंतर!
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