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सामंजस्य / सुमित्रानंदन पंत
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06:40, 1 जून 2010
भाव सत्य बोली मुख मटका
‘तुम - मैं की सीमा है बंधन,
मुझे सुहाता
बाद्ल
बादल
सा नभ में
मिल जाना, खो अपनापन!
:ये पार्थिव संकीर्ण हृदय हैं,
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