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17:44, 1 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
गुण तो नि:संशय देश तुम्हारे गाएगा,
तुम-सा सदियों के बाद कहीं फिर पाएगा,
:::पर जिन आदर्शों को तुम लेकर तुम जिए-मरे,
:::::कितना उनको
::::::कल का भारत
:::::::अपनाएगा?
बाएँ था सागर औ' दाएँ था दावानल,
तुम चले बीच दोनों के, साधक, सम्हल-सम्हल,
:::तुम खड्गधार-सा पंथ प्रेम का छोड़ गए,
:::::लेकिन उस पर
::::::पाँवों को कौन
:::::::बढ़ाएगा?
जो पहन चुनौती पशुता को दी थी तुमने,
जो पहन दनुज से कुश्ती ली थी तुमने,
:::तुम मानवता का महाकवच तो छोड़ गए,
:::::लेकिन उसके
::::::बोझे को कौन
:::::::उठाएगा?
शासन-सम्राट डरे जिसकी टंकारों से,
घबराई फ़िरकेवारी जिसके वारों से,
:::तुम सत्य-अहिंसा का अजगव तो छोड़ गए,
:::::लेकिन उस पर
::::::प्रत्यंचा कौन
:::::::चढ़एगा?