Changes

{{KKCatKavita}}
<poem>
::बोला माधव,::‘प्यारे यादव
जब तक होंगे लोग नहीं अपने सत्वों से परिचित
जन संग्रह बल पर भव संकृति हो न सकेगी निर्मित!
आज अल्प हैं जीवित जग में औ’ असत्य उत्पीड़ित
लौह मुष्टि से हमें छीननी होगी सत्ता निश्चित!’
::बोला यादव::‘प्यारे माधव
मुझको लगता आज वृत्त में घूम रहा मानव मन,
भौतिकता के आकर्षण से रण जर्जर जग जीवन!
आज मनुज को ऊपर उठ औ’ भीतर से हो विस्तृत
नव्य चेतना से जग जीवन को करना है दीपित!’
::बोला यादव::‘प्यारे माधव,
वही सत्य कर सकता मानव जीवन का परिचालन
भूतवाद हो जिसका रज तन प्राणिवाद जिसका मन
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits