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आँसू / जयशंकर प्रसाद / पृष्ठ ४

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यह पारावार तरल हो<br />
फेनिल हो गरल उगलता<br />
मथ जाला डाला किस तृष्णा से<br />
तल में बड़वानल जलता।<br />
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