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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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हम गाँधी की प्रतिभा के इतने पास खड़े

हम देख नहीं पाते सत्‍ता उनकी महान,

:::उनकी आभा से आँखें होतीं चकाचौंध,

:::::गुण-वर्णन में

::::::साबित होती

:::::::गूँगी ज़बान।


वे भावी मानवता के हैं आदर्श एक,

असमर्थ समझने में है उनको वर्तमान,

:::वर्ना सच्‍चाई और अहिंसा की प्रतिमा

:::::यह जाती दुनिया

::::::से होकर

:::::::लोहू लुहान!


जो सत्‍यं, शिव, सुन्‍दर, शुचितर होती है

दुनिया रहती है उसके प्रति अंधी, अजान,

:::वह उसे देखती, उसके प्रति नतशिर होती

:::::जब कोई कवि

::::::करता उसको

:::::::आँखें प्रदान।


जिन आँखों से तुलसी ने राघव को देखा,

जिस अतर्दृग से सूरदास ने कान्‍हा को,

:::कोई भविष्‍य कवि गाँधी को भी देखेगा,

:::::दर्शाएगा भी

::::::उनकी सत्‍ता

:::::::दुनिया को।


भारत का गाँधी व्‍यक्‍त नहीं तब तक होगा

भारती नहीं जब तक देती गाँधी अपना,

:::जब वाणी का मेधावी कोई उतरेगा,

:::::तब उतरेगा

::::::पृथ्‍वी पर गाँधी

:::::::का सपना।


जायसी, कबीरा, सूरदास, मीरा, तुलसी,

मैथिली, निराला, पंत, प्रसाद, महादेवी,

ग़ालिबोमीर, दर्दोनज़ीर, हाली, अकबर,

इक़बाल, जोश, चकबस्‍त फिराक़, जिगर, सागर

:::की भाषा निश्‍चयवरद पुत्र उपजाएगी

:::जिसके प्रसाद-माधुर्य-ओजमय वचनों में

:::::मेरी भविष्‍य

::::::वाणी सच्‍ची

:::::::हो जाएगी।
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