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बिखरें, ये बनकर तारा<br />
सित सरसित से भर जावे<br />
वह स्वर्गंगा स्वर्ग गंगा की धारा<br />
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नीलिमा शयन पर बैठी<br />
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रजनी की रोई आँखें<br />
आलोक बिन्दु टपकातींटपकाती<br />
तम की काली छलनाएँ<br />
उनको चुप-चुप पी जाती।<br />
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सुख अपमानित करता-सा<br />
जब व्यंग हँसी हँसता हैंहै<br />
चुपके से तब मत रो तू<br />
यब कैसी परवशता हैं।है।<br />
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अपने आँसू की अंजलि<br />
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जीवन सागर में पावन<br />
बडवानल बड़वानल की ज्वाला-सी<br />
यह सारा कलुष जलाकर<br />
तुम जलो अनल बाला-सी।<br />
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जिसके आगे पुलकित हो<br />
जीवन हैं है सिसकी भरता<br />हाँ मृत्यु नृत्य करती हैंहै<br />
मुस्क्याती खड़ी अमरता ।<br />
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