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युगागम / सुमित्रानंदन पंत
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07:59, 4 जून 2010
रज के तम को छू कर
स्वर्ण हास्य से भर दो,
भू मन को कर
मास्वर
भास्वर
!
सृजन करो नव जीवन,
नव कर्म, वचन, मन!
</poem>
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