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चौथी भूख / सुमित्रानंदन पंत
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08:08, 4 जून 2010
तीसरी रे भूख आत्मा की गहन!
इंद्रियों की देह से ज्यों है
पर
परे
मन
मनो जग से परे त्यों आत्मा चिरंतन
जहाँ मुक्ति विराजती
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