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गोपन / सुमित्रानंदन पंत
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09:27, 4 जून 2010
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<poem>
मैं कहता कुछ रे बात और!
कोकिल की नव मंजरित कूक!
काले अंतर का जला
प्रम
प्रेम
लिखते कलियों में सटे भौंर!
मैं कहता कुछ, रे बात और!
</poem>
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