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साँचा:KKPoemOfTheWeek

20 bytes added, 06:33, 6 जून 2010
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : शीतल पेयजल पीता है सूरज पढ़ेगी जब तलक दुनिया लिखा दीवान ग़ालिब का<br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[दिनकर कुमारमधुभूषण शर्मा]]</td>
</tr>
</table>
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
बहुराष्ट्रीय कंपनियों पढ़ेगी जब तलक दुनिया लिखा दीवान ग़ालिब का नया प्रतिनिधि सूरज डूबने से पहले शीतल पेयजल पीता हैबढ़ेगा और चाँद एक बोतल की शक्ल में उभर आता है भी रुतबा अज़ीमुश्शान ग़ालिब का
बच्चे गाते हैं लगा सकता नहीं कोई कभी कीमत यहाँ उसकीविज्ञापन जो घर से बाद मरने के गीत उछलते हैं-नाचते हैं अजीब-अजीब आवाज़ के साथ एक खुशहाल देश को प्रायोजित किया जाता है किस कदर गद-गद होता है अंग्रेज़ी में लिपटा हुआ देश शेयर बाज़ार के दलालों के फूले हुए चेहरे पाप और पुण्य की शिकन को कभी महसूस नहीं कर सकते मिला सामान ग़ालिब का
जीने की ज़रूरी शर्त बन गई है जुआरी मस्त बादाकश-सा शायर तो दिखा सब कोधूर्त होने की कला गरीबी की रेखा की ग्लानि से ऊपर उठकर उधार की समृद्घि तिरंगे पर फैल जाती है कि कोई कद्र-दाँ ही फ़न सका पहचान ग़ालिब का
कूड़ेदानों में जूठन बटोरते हुए बच्चों और अधनंगी औरतों गली कोठों मुहल्लों के बारे झरोखे आज तक पूछेंचुका पाएगी क्या दिल्ली कभी एहसान ग़ालिब का शराबो-कर्ज़ में ड़ूबे करें अशयार दीवानाकोई विधेयक पारित कि प्यासा रह नहीं होता सकता कभी मेहमान ग़ालिब काठंडे चूल्हों को सुलगाने के बारे में न्यायपालिका के पास ज़रा बादल गुज़रने दो दिखाई चाँद तब देगाकोई विशेषाधिकार नहीं है मतलब समझ पाना रहा आसान ग़ालिब काबाज़ारू बनने की होड़ में बिकाऊ बना दिया गया न कहिए यह कि तू क्या है ये अंदाज़े-अदावत है सूरज को चाँद को धरती ख़फ़ा इस गुफ़्तगू से है दिले-नादान ग़ालिब का नहीं थी हाथ को जुंबिश तो ये आँखों का ही दम था रहामनुष्य पाँओं की गरिमा कोलग्ज़िश से बचा ईमान ग़ालिब का है लाया रंग सचमुच शोख़ फ़ाक़ामस्त वो पैकर न हो बेआबरू पाया ‘मधुर’ ऐलान ग़ालिब का
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