गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
हाइकु / कमलेश भट्ट 'कमल'
5 bytes added
,
13:40, 9 जून 2010
मुँह चिढ़ाती
लम्बे चौड़े पुल को
सूखती नदी
!
।
ऊब चले है
वर्षा की प्रतीक्षा में
पैड़-पौधे
भी!
भी।
पीने लगा है
धरती का भी पानी
प्यासा
सूरज!
सूरज।
निकली नहीं कन्जूस बादलों से एक भी बूँद
डा० जगदीश व्योम
929
edits