{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>#REDIRECT [[जग के उर्वर आँगन मेंबरसो ज्योतिर्मय जीवन!बरसो लघु लघु तृण तरु परहे चिर अव्यय, चिर नूतन!बरसो कुसुमों के मधु बन,प्राणो में अमर प्रणय धन;स्मिति स्वप्न अधर पलकों मेंउर अंगो में सुख यौवन!छू छू जग के मृत रज कणकर दो तृण तरु में चेतन,मृन्मरण बांध दो जग कादे प्राणो का आलिंगन!बरसो सुख बन, सुखमा बन,बरसो जग जीवन के घन!दिशि दिशि में औ' पल पल मेंबरसो संसृति के सावन!</poem>सुमित्रानंदन पंत सम्पादन]]