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द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र / सुमित्रानंदन पंत
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07:01, 10 जून 2010
<poem>
द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र!
हे
स्त्रस्त
स्रस्त
-ध्वस्त! हे शुष्क-शीर्ण!
हिम-ताप-पीत, मधुवात-भीत,
तुम वीत-राग, जड़, पुराचीन!!
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