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<poem>
द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र!
हे स्त्रस्तस्रस्त-ध्वस्त! हे शुष्क-शीर्ण!
हिम-ताप-पीत, मधुवात-भीत,
तुम वीत-राग, जड़, पुराचीन!!
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