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वे चहक रहीं कुंजों में / सुमित्रानंदन पंत
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07:12, 10 जून 2010
<poem>
वे चहक रहीं कुंजों में चंचल सुंदर
चिड़ियाँ, उर का सुख बरस रहा स्वर-स्वर
पर।
पर!
पत्रों-पुष्पों से टपक रहा स्वर्णातप
प्रातः समीर के मृदु स्पर्शों से कँप-कँप!
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