{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem># REDIRECT [[चंचल पग दीपशिखा के धर गृह, मग़, वन में आया वसंत सुलगा फागुन का सूनापन सौन्दर्य शिखाओं में अनंत सौरभ की शीतल ज्वाला से फैला उर उर में मधुर दाह आया वसंत, भर पृथ्वी पर स्वर्गिक सुंदरता का प्रवाह पल्लव पल्लव में नवल रूधिर पत्रों में मांसल रंग खिला आया नीली पीली लौ से पुष्पों के चित्रित दीप जला अधरों की लाली से चुपके कोमल गुलाब से गाल लजा आया पंखड़ियों को काले- पीले धब्बों शिखा-से सहज सजा कलि के पलकों में मिलन स्वप्न अलि के अंतर में प्रणय गान लेकर आया प्रेमी वसंत आकुल जड़-चेतन स्नेह प्राण </poem>सुमित्रानंदन पंत]]