700 bytes added,
21:53, 10 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= गज़ल / विजय वाते
}}
<poem>
पल पल देख निरंतर देख,
थोडा मन के अंदर देख |
कैसे खेल दिखाता है,
आदमजात कलंदर देख |
इंद्र सभा मे कैद हुआ,
स्वर्ग का राजा इन्दर देख |
अंदर से सारे प्यासे,
नदियाँ और समंदर देख |
वो भी कितना तनहा है,
दुनियां जीत सिकंदर देख|</poem>