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22:00, 10 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= गज़ल / विजय वाते
}}
<poem>
अगर अपने होने का धोखा रहेगा,
तभी तो इबादत का मौका रहेगा |
दो पद चिन्ह मेरे दो पद चिन्ह तेरे,
जमा खर्च इतना सा होता रहेगा |
मुझे होश खोकर भी ये होश होगा,
कुल अपने दिल का झरोखा रहेगा |
बदलता बदलता बदलाता लगेगा,
बदलता मगर सिर्फ खोखा रहेगा |</poem>