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होते गये / विजय वाते
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03:21, 11 जून 2010
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह=
गज़ल
ग़ज़ल
/ विजय वाते
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जैसे जैसे हम बड़े होते गये,
खूठ
झूठ
कहने मे खरे होते गये |
चाँद बाबा गिल्ली डंडा इमलियाँ,
Shrddha
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